देवउठनी एकादशी कब है पूजा में गन्ने का क्या है खाश महत्व,जांनिये
देवउठनी एकादशी कब है पूजा में गन्ने का क्या है खाश महत्व,जांनिये

भिण्ड,देवउठनी एकादशी 23 नवंबर, गुरुवार के दिन पड़ रही है ऐसे में माना गया है कि इस तिथि पर ही भगवान विष्णु क्षीरसागर में चार माह के नींद के बाद उठते है, जिसे हम देवउठनी एकादशी के रूप में मनाते है,इस देवउठनी एकादशी पर पूजा में ज्यादातर लोग गन्ने का इस्तेमाल किया करते है, गन्ने की पूजा क्यों कि जाती है क्या है पीछे की मान्यता है इस खबर में हम जानते है।
दरसल देवउठनी एकादशी को तुलसी विवाह की रुप में भी जाना जाता है. इस दिन तुलसी और भगवान विष्णु का विवाह गन्ने के मंडप के नीचे करवाया जाता है. मध्यप्रदेश के चंबल इलाके के भिण्ड जिले में इस दिन गन्ने की पूजा भी की जाती है.आचार्य प्रशान्त शास्त्री बताते है देवउठनी एकादशी के दिन किसान गन्ने की नई फसल की कटाई का काम शुरू करते हैं. इस दिन से पहले कोई भी किसान गन्ने के एक भी पौधे को हाथ तक नहीं लगाता है. मौसम बदलने की वजह से इस दिन से लोग गुड़ का सेवन करना शुरू करते हैं. गुड़ को गन्ने के रस से बनाया जाता है इसलिए इस दिन गन्ने की पूजा का महत्व और अधिक बढ़ जाता है. गन्ने को मीठे का शुभ स्रोत माना जाता है इसलिए गन्ने की पूजा की जाती है।
कब शुभ कार्य हो जाते हैं प्रारंभ
आषाढ़ माह में देवशयनी एकादशी से लेकर चतुर्मास माह तक देवता सभी नींद में रहते हैं. उसके बाद कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को ‘देव उठनी एकादशी’ कहा जाता है और इस दिन से भगवान विष्णु निद्रा से वापस आ जाते हैं और तभी से शुभ कार्य जैसे विवाह, सगाई, मुंडन इत्यादि कार्य भी प्रारंभ हो जाते हैं.
इस तरह करे पूजा:
देवउठनी एकादशी की पूजा करने वाले लोगो को कुछ विधि बताने जा रहे है आप इस तरह कर सकते है पूजा
– सुबह स्नान के बाद चौकी पर भगवान विष्णु की तस्वीर स्थापित करें भगवान विष्णु को चंदन और हल्दी कुमकुम से तिलक लगाएं, दीपक जलाने के साथ प्रसाद में तुलसी की पत्ती जरूर डालें,इसके अलावा तुलसी पूजन के लिए तुलसा के चारों गन्ने का तोरण बनाएं, रंगोली से अष्टदल कमल बनाएं और तुलसी के साथ आंवले का गमला लगाएं, तुलसी पूजा व आरती के बाद प्रसाद वितरण करें

